जीएसटी : सरल हिंदी में -
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भारत सरकार ने केंद्रीय जीएसटी एक्ट, 2017 के अनुभाग 1 के तहत 1 जुलाई 2017 से पुरे देश (जम्मू-कश्मीर राज्य को छोड़कर) में वस्तु व सेवा कर (Goods & Service Tax या जीएसटी) को लागू किया, व जम्मू-कश्मीर राज्य में जीएसटी 08.07.2017 से लागू हुआ। आजादी के बाद वस्तु व सेवा कर (जीएसटी) को भारत में सबसे बड़े कर सुधार के रूप में माना जा रहा है। यह एक गंतव्य आधारित (destination based) अप्रत्यक्ष कर (Indirect Tax) है, यानि वस्तु या सेवा का जिस राज्य में उपभोग होगा उस राज्य को उस वस्तु / सेवा का जीएसटी प्राप्त होगा।
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30.06.2017 तक किसी भी वस्तु के उत्पादन पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क लगता था और उस वस्तु की बिक्री पर वेट लगता था, लेकिन 01.07.2017 से पूरे भारत में जीएसटी लागू होने से अब से सिर्फ वस्तु की आपूर्ति (सप्लाई) पर जीएसटी लगेगा, अर्थात् वस्तु के उत्पादन करके बेचने को भी वस्तु की आपूर्ति (सप्लाई) माना जाएगा। जीएसटी बिक्री / खरीद के प्रत्येक चरण की श्रृंखला पर लगाया जाता है, जब तक कि वह वस्तु उपभोक्ता तक नहीं पहुंचे। इसका तात्पर्य यह है कि जीएसटी या अन्य अप्रत्यक्ष-कर (जैसे- वैट) उपभोक्ता को ही वहन करना होता है।
जीएसटी एक ऐसा कर है जिसने भारत में लगाए गए सभी पहले के अप्रत्यक्ष करों को अपने में समाहित कर लिया, जैसे- बिक्री कर (VAT), केंद्रीय बिक्री कर (CST), केंद्रीय उत्पाद शुल्क (Central Excise Duty), सर्विस टैक्स, ऑक्ट्रॉय टैक्स, मनोरंजन कर, लक्ज़री टैक्स आदि। इसमें अपवाद यानि कुछ करों को अभी सम्मिलित नहीं किया है वह इस प्रकार हैं:- पेट्रोलियम उत्पाद, पंचायत कर / नगर पालिका / जिला परिषद, प्रोफेशन टैक्स, अल्कोहल, स्टांप ड्यूटी, कस्टम ड्यूटी और बिजली बिक्री, इत्यादि।
जीएसटी की दैनिक गतिविधियों को सरकार के दो प्रशासनिक विभाग संभाते हैं :–
- (1) केंद्रीय जीएसटी (CGST)
- (2) राज्य / यूटी जीएसटी (SGST/UTGST)
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यहाँ यूटी (Union Territory) का अर्थ केंद्रशाषित प्रदेश है। पहले जिसे “केंद्रीय उत्पाद शुल्क व सेवा कर विभाग” (Central Excise & Service Tax Department) कहा जाता था, उसे अब केंद्रीय जीएसटी (CGST) विभाग के नाम से जाना जायेगा और पहले जिसे राज्य / यूटी बिक्री कर (VAT) विभाग कहा जाता था उसे अब राज्य / यूटी जीएसटी (SGST / UTGST) विभाग के नाम से जाना जायेगा। अब से किसी व्यक्ति के जीएसटी पोर्टल ( www.gst.gov.in ) पर पंजीकृत होने पर वह या तो सीजीएसटी (CGST) विभाग या तो स्टेट / यूटी जीएसटी (SGST/UTGST) विभाग में कम्प्यूटर द्वारा आवंटित किया जायेगा, यानि सिर्फ एक विभाग के अंतर्गत आएगा, जबकि पहले कारोबारी को जितने तरह के टैक्स भरने पड़ते थे उतने टैक्स के भिन्न-भिन्न विभागों में पंजीकरण कराना होता था, अतः जीएसटी लागू होने से जीएसटी विभाग में सिर्फ एक ही पंजीकरण करना होगा।
अभी जीएसटी में चार प्रकार के कर लगाए गए हैं :-
- (1) सेंट्रल जीएसटी (CGST),
- (2) स्टेट / यूटी जीएसटी (SGST/UTGST),
- (3) इंटीग्रेटेड जीएसटी (IGST),
- (4) कम्पेंसेशन सेस (Comepensation Cess) : यह सेस सिर्फ लक्ज़री या सिन वस्तुओं पर लगेगा, जैसे- कार, सिगरेट, तम्बाकू, गुटखा आदि।
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इनपुट टैक्स क्रेडिट (Input Tax Credit) :: संक्षिप्त में :
एक जीएसटी पंजीकृत कारोबारी (जो कि वस्तुओं/सेवाओं की आपूर्ति का कारोबार कर रहा है), को उसके द्वारा खरीदे गए इनपुट्स (raw materials), कैपिटल-वस्तुओं (Capital Goods, जैसे- मशीनरी, फैक्ट्री या कार्यालय में उपयोग के लिए कम्पूटर, कैलकुलेटर, एयर-कंडीशनर, फर्नीचर, आदि) व इनपुट-सेवाओं पर अदा किए गए जीएसटी (सेंट्रल जीएसटी, स्टेट / यूटी जीएसटी, इंटीग्रेटेड जीएसटी, कम्पेंसेशन सेस) का इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) मिलता है जिसे वह उसके द्वारा आपूर्ति (supply) की जाने वाली वस्तुओं/सेवाओं के जीएसटी (सेंट्रल जीएसटी, स्टेट / यूटी जीएसटी, इंटीग्रेटेड जीएसटी, कम्पेंसेशन सेस) का समायोजन (set-off) कर सकता है जिससे कर पर कर नहीं लगता है। इनपुट टैक्स क्रेडिट का डेबिट/क्रेडिट कारोबारी के जीएसटी पोर्टल के अकाउंट में स्थित इलेक्ट्रोनिक क्रेडिट लेजर (Electronic Credit Ledger) में उपलब्ध रहता है।
इनपुट टैक्स क्रेडिट का समायोजन निम्न प्रकार से किया जाता है :-
(1) इंटीग्रेटेड जीएसटी (IGST) क्रेडिट : कारोबारी के पास जमा किसी महीने के इनपुट इंटीग्रेटेड जीएसटी (IGST) क्रेडिट को वह उसकी आपूर्ति पर लगने वाले इंटीग्रेटेड जीएसटी (IGST) के लिए काम में ले सकता है, व इसके बाद भी यदि इंटीग्रेटेड जीएसटी (IGST) क्रेडिट जमा रहता है तो उसे सेंट्रल जीएसटी (CGST) की आपूर्ति के लिए काम में ले सकता है, और यदि इसके बाद भी यदि इंटीग्रेटेड जीएसटी (IGST) क्रेडिट जमा रहता है तो उसे स्टेट/यूटी जीएसटी (SGST/UTGST) की आपूर्ति के लिए काम में ले सकता है।
(2) सेंट्रल जीएसटी (CGST) क्रेडिट : कारोबारी के पास जमा किसी महीने के इनपुट सेंट्रल जीएसटी (CGST) क्रेडिट को वह उसकी आपूर्ति पर लगने वाले इंटीग्रेटेड जीएसटी (IGST) के लिए काम में ले सकता है, और इसके बाद भी यदि सेंट्रल जीएसटी (CGST) क्रेडिट जमा रहता है तो उसे सेंट्रल जीएसटी (CGST) की आपूर्ति के लिए काम में ले सकता है।
(3) स्टेट / यूटी जीएसटी (SGST/UTGST) क्रेडिट : कारोबारी के पास जमा किसी महीने के इनपुट स्टेट/यूटी जीएसटी (SGST/UTGST) क्रेडिट को वह उसकी आपूर्ति पर लगने वाले इंटीग्रेटेड जीएसटी (IGST) के लिए काम में ले सकता है, और इसके बाद भी यदि स्टेट/यूटी जीएसटी (SGST/UTGST) क्रेडिट जमा रहता है तो उसे स्टेट/यूटी जीएसटी (SGST/UTGST) की आपूर्ति के लिए काम में ले सकता है।
(4) कम्पेंसेशन सेस (Comepensation Cess) क्रेडिट : कारोबारी के पास जमा किसी महीने के इनपुट कम्पेंसेशन सेस (Comepensation Cess) क्रेडिट को वह उसकी आपूर्ति पर लगने वाले कम्पेंसेशन सेस (Comepensation Cess) के लिए ही काम में ले सकता है।
जीएसटी में मूलतः दो प्रकार की आपूर्ति (सप्लाई) होती है :-(1) राज्य / केन्द्रशाषित-प्रदेश के भीतर (Intra-state supply) :
ऐसे में वस्तु आपूर्ति करने वाला व वस्तु प्राप्त करने वाला एक ही राज्य / केन्द्रशाषित-प्रदेश में स्थित होता है। जैसे- वड़ोदरा से वस्तु की सप्लाई अहमदाबाद की जाए, या दिल्ली से वस्तु की सप्लाई दिल्ली में ही की जाए, या कानपूर से लखनऊ, या दमन से दमन, तो ऐसी सप्लाई को राज्य-में (इंट्रा-स्टेट) सप्लाई कहते हैं। ऐसे में वस्तु / सेवा की आपूर्ति पर दो प्रकार के जीएसटी यानि सेंट्रल जीएसटी (CGST) और स्टेट/यूटी जीएसटी (SGST/UTGST) लगता है। अन्य शब्दों में- जब वस्तु / सेवा की आपूर्ति (सप्लाई) उसी राज्य / केन्द्रशाषित-प्रदेश में होगी, जिस राज्य / केन्द्रशाषित-प्रदेश में वस्तु भेजने वाला या सेवा प्रदान करने वाला पंजीकृत है तो उस वस्तु / सेवा पर सेंट्रल जीएसटी (CGST) व स्टेट / यूटी जीएसटी (SGST/ UTGST) लगेगा।
(2) अंतर्राज्यीय आपूर्ति (Inter-state supply) :-
ऐसे में वस्तु आपूर्ति करने वाला व वस्तु प्राप्त करने वाला, भिन्न-भिन्न राज्यों में स्थित होता है। जैसे- अहमदाबाद से वस्तु की आपूर्ति (सप्लाई) मुंबई की जाए, या दिल्ली से वस्तु की सप्लाई फरीदाबाद में की जाए, या सिलवासा (दादरा, यूटी) से वस्तु की सप्लाई वापी (गुजरात) में की जाए, तो ऐसी सप्लाई को अंतर्राज्यीय आपूर्ति (Inter-state supply) कहते हैं। ऐसे में वस्तु / सेवा की आपूर्ति पर इंटीग्रेटेड जीएसटी (IGST) लगता है। अन्य शब्दों में- जब वस्तु / सेवा की आपूर्ति (सप्लाई) किसी दूसरे राज्य / यूटी में होगी जिस राज्य में वस्तु भेजने वाला या सेवा प्रदान करने वाला पंजीकृत है, तो वस्तु/सेवा पर इंटीग्रेटेड जीएसटी (IGST) लगाना होगा, यानि अंतर्राज्यीय आपूर्ति पर इंटीग्रेटेड जीएसटी (IGST) लगेगा।
उदाहरण 1 :- जैसे कि जीएसटी दर 5% है और मनीष एक चिप्स बनाने वाला कारोबारी जीएसटी में पंजीकृत है व उसके कच्चे माल की कीमत रू. 10,000 है, जिसमे आलू (रू. 3000), तेल (रू. 2000), पैकिंग (रू. 2000), ईंधन (रू. 3000) शामिल है जिसमे पैकिंग पर 18% कि दर से रू. 360 जीएसटी शामिल है क्योंकि आलू, तेल व ईंधन पर जीएसटी नहीं लगता है लेकिन पैकिंग पर जीएसटी लगता है, तो सिर्फ पैकिंग पर मनीष द्वारा अदा किए गए जीएसटी का उसे रू. 360 का इनपुट टैक्स क्रेडिट मिलेगा।
वह रू. 10,000 में आलू की चिप्स बनाता है और उस पर रू. 7,000 निर्माण (Production) लागत व रू. 3,000 उसका मुनाफा है। इस प्रकार वह इसे रू. 20,000 में दूसरे जीएसटी में पंजीकृत कारोबारी सुरेश को बेचता है, तो सुरेश द्वारा देय जीएसटी 5% यानि रू.1,000 है। बाद में यदि सुरेश, किसी अन्य जीएसटी में पंजीकृत कारोबारी श्याम को वही वस्तु रू.25,000 में बेचता है तो श्याम द्वारा देय जीएसटी 5% की दर से रू.1,250 हुआ और बाद में श्याम उसी वस्तु को अंतिम उपभोक्ता को रू.30,000 में बेचता है, तो अंतिम उपभोक्ता द्वारा देय जीएसटी 5% की दर से रू.1,500 हुआ।
इस क्रम में मनीष को रू. 360 का इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) मिलेगा जिसे वह उसके द्वारा देय जीएसटी रू. 1,000 के लिये समायोजित कर लेगा यहाँ मनीष को केवल रू. 640 ही सरकार के जीएसटी अकाउंट में जमा करना होगा।
इसी प्रकार सुरेश को रू. 1,000 जीएसटी का इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) मिलेगा जिसे वह उसके द्वारा देय जीएसटी रू. 1,250 के लिये समायोजित कर लेगा, यहाँ सुरेश को केवल रू. 250 ही सरकार के जीएसटी अकाउंट में जमा करना होगा। और इसी प्रकार श्याम को रू. 1,250 जीएसटी का इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) मिलेगा जिसे वह उसके द्वारा देय जीएसटी रू. 1,500 के लिये समायोजित कर लेगा, यहाँ श्याम को केवल रू. 250 ही सरकार के जीएसटी अकाउंट में जमा करना होगा। इस प्रकार ‘कर पर कर’ का कोई बोझ नहीं पड़ता।
उपरोक्त उदाहरण में सरकार के पास कुल जीएसटी रू.1,200 (60+640+250+250) जमा हुआ व शेष जीएसटी इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) के माध्यम से समायोजित हो गया, यहां यह माना गया है कि मनीष ने जो रू.10,000 के इनपुट व पैकिंग मटेरियल ख़रीदे उनमें भी आपूर्तिकर्ता का मुनाफा शामिल है।
उदाहरण 2 :- जैसे कि जीएसटी दर 18% है और मोहन एक घर की सफाई करने में इस्तेमाल करने का रसायन (फ्लोर क्लीनर) बनाने वाला कारोबारी जीएसटी में पंजीकृत है व उसे 500 लीटर फ्लोर क्लीनर बनाने के लिए 10 तरह के अलग-अलग प्रकार के रसायन खरीदने होते हैं, जिनकी कुल कीमत रू.20,000 है (मूल कीमत रू.16,949 व जीएसटी रू.3,051 है) और पैकिंग खर्च रू.5,000 (मूल कीमत रू.4,237 व जीएसटी रू.763 है)।
अर्थात् मोहन रू.25,000 में 500 लीटर फ्लोर क्लीनर बनाता है, जिसकी रू.21,186 लागत (Cost) है, रू.3,814 इनपुट जीएसटी है और रू.10,000 उसका मुनाफा व माल बनाने की कीमत है। इस प्रकार वह इस फ्लोर क्लीनर को रू.31,186 में दूसरे जीएसटी पंजीकृत कारोबारी केशव को बेचता है, तो उस पर केशव द्वारा देय जीएसटी 18% यानि रू.5,613 है, यानि जीएसटी मिलाकर कुल कीमत रू.36,799 हुई। बाद में केशव, किसी अन्य जीएसटी में पंजीकृत कारोबारी बनवारी को वही वस्तु रू.40,000 में बेचता है तो बनवारी द्वारा देय जीएसटी 18% की दर से रू.7,200 हुआ (यहां जीएसटी मिलाकर कुल कीमत रू.47,200 हुई और बाद में बनवारी उसी वस्तु को अंतिम उपभोक्ता को जीएसटी सहित रू.59,000 में बेचता है, तो अंतिम उपभोक्ता द्वारा देय जीएसटी 18% की दर से रू.9,000 हुआ।
इस क्रम में मोहन को रू.3,814 का इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) मिलेगा जिसे वह उसके द्वारा देय जीएसटी रू.5,613 के लिये समायोजित कर लेगा यहाँ मोहन को केवल रू.1,799 ही सरकार के जीएसटी अकाउंट में जमा करना होगा।
इसी प्रकार केशव को रू.5,613 का जीएसटी का इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) मिलेगा जिसे वह उसके द्वारा देय जीएसटी रू.7,200 के लिये समायोजित कर लेगा, यहाँ केशव को केवल रू.1,587 ही सरकार के जीएसटी अकाउंट में जमा करना होगा।
और इसी प्रकार बनवारी को रू.7,200 जीएसटी का इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) मिलेगा जिसे वह उसके द्वारा देय जीएसटी रू.9,000 के लिये समायोजित कर लेगा, यहाँ श्याम को केवल रू.1,800 ही सरकार के जीएसटी अकाउंट में जमा करना होगा। इस प्रकार ‘कर पर कर’ का बोझ कम हो जाता है।
- उपरोक्त उदाहरण में सरकार के पास कुल जीएसटी रू.5,700 (514+1799+1587+1800) जमा हुआ व शेष जीएसटी इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) के माध्यम से समायोजित हो गया, यहां यह माना गया है कि मोहन ने जो रू.25,000 के इनपुट व पैकिंग मटेरियल ख़रीदे उनमें भी आपूर्तिकर्ता का मुनाफा शामिल है।
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जीएसटी पंजीकरण (GST Registration) -
1.7.2017 से जीएसटी पंजीकरण के लिए विशेष दर्जे वाले राज्यों (हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम, असम, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम, नागालैंड व त्रिपुरा) को छोड़कर अन्य सभी राज्यों के लिए वार्षिक टर्नओवर की सीमा रू.20 लाख रखी गई है (1.1.2020 से वस्तु आपूर्तिकर्ता के लिए यह सीमा रू.40 लाख की लेकिन सेवा प्रदाता के लिए सीमा रू.20 लाख ही रखी है) जबकि विशेष दर्जे वाले राज्यों के लिए वार्षिक टर्नओवर की सीमा रू.10 लाख रखी गई है। इसका अर्थ यह है कि यदि किसी विशेष दर्जे वाले राज्य के कारोबारी का वार्षिक टर्नओवर रू. 8 लाख है तो उसे जीएसटी में पंजीकरण करने की जरुरत नहीं है, इसी प्रकार यदि किसी अन्य राज्य के कारोबारी का वार्षिक टर्नओवर रू. 18 लाख है तो उसे जीएसटी में पंजीकरण करने की जरुरत नहीं है।
जीएसटी पंजीकरण कराने की जरुरत किसको नहीं है ?
(1) यदि कोई ऐसी वस्तु और/या सेवा का कारोबार करता है जिन्हें बेचने पर किसी प्रकार का जीएसटी देय नहीं है, यानि जीएसटी-मुक्त वस्तुएं/सेवाएं हैं तो उसे जीएसटी में पंजीकरण कराने की जरूरत नहीं है।
(2) किसान जो कि खेत की बुवाई से तैयार फसल की आपूर्ति करता हो।धारा 24 के तहत जीएसटी पंजीकरण निम्न को लेना आवश्यक है :-
=> कारोबारी जो अन्तर्राज्यीय (inter-state) आपूर्ति करता हों;
=> ऐसे व्यक्ति जिन्हें रिवर्स चार्ज के तहत जीएसटी भरना है;
=> धारा 9(5) के तहत सेवा प्रदान करने वाले ई-कॉमर्स ऑपरेटर;
=> व्यक्ति जो दूसरों की जगह पर वस्तु या सेवा या दोनों की आपूर्ति करते हैं;
=> व्यक्ति जो धारा 51 के तहत स्रोत पर कर काटते (TDS) हैं;
=> आवक सेवा वितरक (Input Service Distributor);
=> सभी ई-कॉमर्स ऑपरेटर;
=> व्यक्ति जो वस्तुओं व/या सेवाओं की आपूर्ति ई-कॉमर्स ऑपरेटर के द्वारा करते हैं जिन्हें धारा 52 के तहत स्रोत पर कर संग्रह (TCS) करते हैं;
=> जो ऑनलाइन सूचना व डेटाबेस एक्सेस (पढ़ना) या पुनः प्राप्ति की सेवाएं भारत के बाहर से भारत में स्थित जीएसटी-अपंजीकृत व्यक्ति को प्रदान करना;
=> अनिवासी कर-योग्य व्यक्ति जो करीय आपूर्ति करते हैं और धारा 27(1) के तहत ऐसा पंजीकरण उनके द्वारा चाही गई अवधि या 90 दिनों के लिए (जो भी पहले हो) तक मान्य होगा, जबकि जरुरत होने पर संबंधित अधिकारी द्वारा और 90 दिनों तक बढ़ाया जा सकेगा; धारा 27(2) के तहत ऐसे व्यक्ति को एडवांस में अंदाजित जीएसटी जमा कराना है;
=> आकस्मिक कर-योग्य आपूर्ति करने वाले कारोबारी को कारोबार प्रारम्भ करने के 5 दिन पहले पंजीकरण कराना आवश्यक है और धारा 27(1) के तहत ऐसा पंजीकरण उनके द्वारा चाही गई अवधि या 90 दिनों के लिए (जो भी पहले हो) तक मान्य होगा, जबकि जरुरत होने पर संबंधित अधिकारी द्वारा और 90 दिनों तक बढ़ाया जा सकेगा; धारा 27(2) के तहत ऐसे व्यक्ति को एडवांस में अंदाजित जीएसटी जमा कराना है;
जीएसटी पंजीकरण कराने के लिए जरुरी दस्तावेज (Documents required for GST Registration) :-
- प्रोप्राइटरशिप जीएसटी पंजीकरण के लिए निम्नलिखित दस्तावेजों (Documents) की जरुरत होती है और यह सभी ऑनलाइन अपलोड करने होते हैं -
- 1. अपने फोटो की .jpg file,
- 2. आधार कार्ड संख्या (Aadhar Card Number) व पैन (PAN) कार्ड
- 3. कारोबार का एड्रेस प्रूफ (Address Proof) {जैसे- बिजली का बिल}
- 4. किसी बैंक में करंट अकाउंट के cancelled चेक की .jpg file (यदि कारोबार का बैंक अकाउंट नहीं खोला है तो जीएसटी पंजीकरण आवेदन से 45 दिन में दे सकते हैं)
- 5. यदि किसी व्यक्ति को ऑथोराइज किया हो तो ऑथोरिटी-पत्र (Authority Letter).
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जीएसटी पंजीकरण कराने के लिए हमसे संपर्क करें -> CONTACT US
- जीएसटी पंजीकरण रद्द (cancel) कराने की स्थितियां :-
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=> पंजीकृत व्यक्ति की मृत्यु होने पर;
=> पंजीकृत व्यक्ति द्वारा जीएसटी अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन किया हो;
=> धारा 10 के तहत कम्पोजीशन पंजीकृत व्यक्ति ने यदि लगातार तीन अवधियों के रिटर्न नहीं भरे हों;
=> कम्पोजीशन पंजीकृत व्यक्ति के अलावा अन्य पंजीकृत व्यक्ति ने यदि लगातार 6 महीनों के रिटर्न नहीं भरे हों;
=> धारा 25(3) के तहत पंजीकरण की आवश्यकता न होने पर भी पंजीकरण कराने के बाद 6 महीनों में कारोबार प्रारम्भ नहीं किया हो;
=> जानबूझकर गलत तरीके से, गलत जानकारी देकर या जानकारी छुपाकर पंजीकरण कराया हो;
=> जीएसटी पंजीकरण रद्द होने के बाद भी यदि जीएसटी की देनदारी बनती हो तो जीएसटी जमा कराया जा सकेगा;
=> जीएसटी पंजीकरण रद्द होने के दिन यदि पंजीकृत व्यक्ति के पास उपलब्ध स्टॉक बैलेंस (इनपुट, अपूर्ण अथवा पुर्णतः तैयार वस्तुओं में शामिल इनपुट, कैपिटल वस्तुओं, संयंत्र व मशीनरी) का जीएसटी, आईटीसी या कैश लेजर से रिवर्स/डेबिट करना होगा; ऐसे में कैपिटल वस्तुओं, संयंत्र व मशीनरी पर ल्हास (depreciation) की गणना करने के बाद शेष बची कीमत पर करनी होगी;
धारा 30 के अनुसार रद्द किए गए पंजीकरण को पुनः लेने के लिए (revoke) व्यक्ति रद्द की गई तिथि से 30 दिन में पुन: आवेदन कर सकता है.
जीएसटी पंजीकरण संबंधित सुझाव :-
1. यदि कोई वस्तुओं के खरीदने-बेचने का कारोबार करता है और उसका वार्षिक टर्नओवर रू.5 लाख है तो भी जीएसटी का पंजीकरण कराना चाहिए, क्योंकि भले ही उसके द्वारा बेची गई वस्तुओं पर जीएसटी नहीं लगेगा लेकिन वह यदि किसी जीएसटी पंजीकृत व्यक्ति से माल खरीदेगा तो उसे जीएसटी चुकाना पड़ेगा और इस प्रकार उसे उतने जीएसटी का नुकसान होगा क्योंकि वह जीएसटी उसकी कॉस्ट में जुड़ जाएगा जिसे वह बेचते समय बिल में नहीं चार्ज कर सकेगा।
2. यदि कोई सेवा प्रदाता है या ऐसी वस्तुओं का कारोबार करता है जिसमें उसकी खरीद पर किसी प्रकार का जीएसटी देय नहीं है और उसका वार्षिक टर्नओवर रू.5 लाख है लेकिन उसके द्वारा बेची गई वस्तुओं या प्रदान की गई सेवाओं पर जीएसटी देय है, तो उसे जीएसटी में उपरोक्त जीएसटी टर्नओवर की छूट का लाभ लेते हुए जीएसटी में पंजीकरण कराने की जरूरत नहीं है।3. यदि किसी व्यक्ति का कारोबार एक से अधिक राज्य/यूटी में है तो उसके पंजीकरण करने की सीमा जानने के लिए उसके सभी राज्यों/यूटी के वार्षिक टर्नओवर का योग (total) करना होगा और यदि उसका सभी राज्यों/यूटी का वार्षिक टर्नओवर का योग जीएसटी पंजीकरण की छूट की सीमा से अधिक हो तो उसे सभी राज्यों व यूटी में जीएसटी का पंजीकरण कराना होगा।
साथ ही यदि किसी कारोबारी के एक ही राज्य या यूटी में एक से अधिक जगह कारोबारी-स्थल (ब्रांच/इकाई) है तो वह चाहे तो सभी ब्रांचों/इकाईयों के लिए एक ही पंजीकरण करा सकता है या एक से अधिक पंजीकरण करा सकता है। जैसे एक कारोबारी मोहन एंटरप्राइज के राजस्थान में 3 स्थान पर जयपुर, जोधपुर व आबु रोड में कारोबार है व सभी जगह से बिल जारी करता है तो – (1) वह चाहे तो जयपुर के कारोबारी पते पर जीएसटी पंजीकरण करा सकता है और जोधपुर व आबू रोड के पतों को उसी पंजीकरण में अतिरिक्त कारोबारी स्थान वर्णित करा सकता है, (2) वह चाहे तो 3 अलग-अलग जीएसटी पंजीकरण करा सकता है, (3) वह चाहे तो कुल 2 पंजीकरण करा सकता है, जैसे जयपुर का अलग पंजीकरण और जोधपुर का अलग पंजीकरण व आबु रोड के पते को जयपुर या जोधपुर, किसी एक पंजीकरण में अतिरिक्त कारोबारी स्थान वर्णित करा सकता है।
जीएसटी पंजीकरण मुख्यतः दो प्रकार के है :-(1) रेगुलर या साधारण जीएसटी पंजीकरण : इसके तहत वह कारोबारी आते हैं जिन्हें उनके द्वारा प्राप्त वस्तुओं / सेवाओं पर अदा किए हुए जीएसटी का इनपुट टैक्स क्रेडिट उनके द्वारा सप्लाई किये जाने वाले वस्तुओं / सेवाओं के लिए समायोजित करना है। जैसे कि उपरोक्त उदाहरण में मनीष, सुरेश, श्याम, मोहन, केशव व बनवारी जीएसटी कारोबारी कहलाएंगे।
(2) कम्पोजीशन जीएसटी पंजीकरण : इसके तहत वह कारोबारी आते हैं जिन्हें उनके द्वारा प्राप्त वस्तुओं / सेवाओं पर अदा किए हुए जीएसटी का इनपुट टैक्स क्रेडिट उनके द्वारा सप्लाई किये जाने वाले वस्तुओं / सेवाओं के लिए समायोजित नहीं करना है लेकिन उन्हें उनके द्वारा सप्लाई किए जाने वाली वस्तु / सेवा पर 1% / 2% / 5% जीएसटी भरना होगा व इस जीएसटी को अपने ग्राहक से इनवॉइस / बिल में नहीं वसूल सकते, यानि इस प्रकार के कारोबारी को किसी प्रकार का इनपुट टैक्स क्रेडिट नहीं मिलेगा, और आपूर्ति (सप्लाई) पर 1% / 2% / 5% जीएसटी स्वयं को वहन करना है।
भारत में कम्पोजीशन जीएसटी पंजीकरण कराने वाले कारोबारी बहुत कम है क्योंकि इन कारोबारियों का मुनाफा उतना ही कम हो जाता है जितने जीएसटी का वे उनकी खरीद व बेचने पर भुगतान करते हैं, यानि उनको इस योजना से उन्हें घाटा होता है। इसलिए जहांतक हो सके कम्पोजीशन जीएसटी पंजीकरण नहीं कराना चाहिए, क्योंकि इससे कारोबारी को घाटा होता है।
इस वेबसाइट में दिए गए उदाहरण में यह माना गया है कि मनीष, सुरेश व श्याम ने रेगुलर जीएसटी पंजीकरण करवाया है और इसलिए मनीष को उसके कच्चे माल पर जीएसटी का इनपुट टैक्स क्रेडिट मिलेगा, इसी प्रकार सुरेश व श्याम को भी जीएसटी का इनपुट टैक्स क्रेडिट मिलेगा।
- लेकिन उपरोक्त उदाहरण में यदि सुरेश ने कम्पोजीशन जीएसटी का पंजीकरण करवाया है तो सुरेश जो चिप्स मनीष से खरीदेगा तो उसे उस चिप्स पर रू.1,000 का इनपुट टैक्स क्रेडिट नहीं मिलेगा तो उसको चिप्स रू.21,000 में पड़ेगी और इसके अलावा जब वह यही चिप्स श्याम को सप्लाई करेगा तो श्याम को रू.25,000 में सप्लाई करने के बाद सुरेश को कम्पोजीशन जीएसटी कि दर 1% के हिसाब से रू.250 सरकार को अलग से चुकाने होंगे जो उसने श्याम से लिए भी नहीं, और इस तरह उसका लाभ रू.3,750 होगा जबकि यदि सुरेश रेगुलर जीएसटी का पंजीकरण करवाता तो उसका लाभ रू.5,000 होता, क्योंकि उसका जीएसटी समायोजित हो जाता। इस तरह, कम्पोजीशन जीएसटी का पंजीकरण करवाने से मुनाफा कम हो जाता है, इसलिए अधिकतर कारोबारी कम्पोजीशन जीएसटी का पंजीकरण करने की बजाय रेगुलर जीएसटी का पंजीकरण करवाते है जिससे उन्हें उनकी खरीद पर चुकाए गए जीएसटी का नुकसान न हो।
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कर-बीजक (टैक्स इनवॉइस), क्रेडिट व डेबिट नोट :-
कर-बीजक या टैक्स-इनवॉइस { संदर्भ धारा 31 व नियम 46 } :-
(1) जीएसटी पंजीकृत व्यक्ति को करयोग्य वस्तुओं की आपूर्ति करने से पहले या करते समय पर कर-बीजक (टैक्स इनवॉइस) जारी करना होगा जिसमे सीजीएसटी नियम 46 के अनुसार वस्तु का विवरण, मात्रा, कीमत व उपयुक्त जीएसटी कर की जानकारी होनी चाहिए. (1) जीएसटी पंजीकृत व्यक्ति को करयोग्य वस्तुओं की आपूर्ति करने से पहले या करते समय पर कर-बीजक (टैक्स इनवॉइस) जारी करना होगा जिसमे सीजीएसटी नियम 46 के अनुसार वस्तु का विवरण, मात्रा, कीमत व उपयुक्त जीएसटी कर की जानकारी होनी चाहिए.
(2) जीएसटी पंजीकृत व्यक्ति को करयोग्य सेवाओं की आपूर्ति करने से पहले या करने के बाद, कर-बीजक (टैक्स इनवॉइस) जारी करना होगा जिसमे सीजीएसटी नियम 46 के अनुसार सेवा का विवरण, मात्रा, कीमत व उपयुक्त जीएसटी कर की जानकारी होनी चाहिए.
धारा 31(3) के अनुसार -
=> जीएसटी का पंजीकरण होने के 30 दिन में पंजीकरण के आवेदन की तिथि से संशोधित कर-बीजक (टैक्स इनवॉइस) जारी कर सकता है;
=> कुछ शर्तों के तहत यदि वस्तुओं व/या सेवाओं की कीमत रू. 200 से कम हो तो पंजीकृत व्यक्ति कर-बीजक जारी नहीं करे तो भी कोई बात नहीं;
=> कम्पोजीशन योजना के तहत पंजीकृत व्यक्ति को कर-बीजक (tax invoice) की बजाय आपूर्ति का बीजक (bill of supply) जारी करना होगा;
=> पंजीकृत व्यक्ति को वस्तु व/या सेवा की आपूर्ति के एवज में एडवांस प्राप्त होने पर प्राप्ति-रसीद (receipt voucher) जारी करना होगा;
=> यदि किसी कारणवश पंजीकृत व्यक्ति को वस्तु व/या सेवा की आपूर्ति के एवज में एडवांस प्राप्त होने के बाद वस्तु व/या सेवा की आपूर्ति नहीं कर सके तो कर-बीजक जारी करने के बजाय रिफंड-रसीद (refund voucher) जारी करेगा;
=> धारा 9(3) या 9(4) के तहत रिवर्स चार्ज में जीएसटी भरनेवाले पंजीकृत व्यक्ति को उसके द्वारा अपंजीकृत व्यक्ति से प्राप्त वस्तुओं व/या सेवाओं के लिए बीजक जारी करना है;
=> पंजीकृत व्यक्ति, जो कि धारा 9(3) या 9(4) के तहत कर का भुगतान करता है, को भुगतान-रसीद (payment voucher) जारी करना होगा.
=> जहाँ वस्तुओं की आपूर्ति लगातार जारी रहती हो, वहाँ इनवॉइस एक तय समय पर जारी की जाएगी { उप-धारा (4) }
- => { उप-धारा (5) } जहाँ प्राप्ति रसीद (receipt voucher) जारी किया गया हो व सेवाओं की आपूर्ति लगातार जारी रहती हो, वहाँ --
- इनवॉइस भुगतान की तिथि के दिन या उससे पहले जारी करनी होगी जबकि अनुबंध (contract) से देय तिथि साबित हो सके;
- इनवॉइस भुगतान की तिथि से पहले या उस समय जारी करनी होगी सेवा-आपूर्तिकर्ता ने भुगतान प्राप्त कर लिया हो जबकि अनुबंध (contract) से देय तिथि साबित न हो सके;
- जब भुगतान किसी घटना (event) के पूर्ण होने से जुड़ा हो तब इनवॉइस, उस घटना के होने से पहले या उस घटना के पूर्ण होने के दिन, जारी की जाए.
-
=> जब सेवाओं की आपूर्ति अनुबंध (contract) पूरा होने से पहले रोक / समाप्त-कर दी जाती है तब इनवॉइस आपूर्ति रुकने के समय जारी की जाए;
=> उप-धारा (1) में वर्णित प्रावधान के बावजूद, जब वस्तु आपूर्ति से पहले अनुमोदन (approval) के लिए भेजी गई हो तो 180 दिनों के भीतर या आपूर्ति के समय इनवॉइस जारी की जाए; धारा 32(1) के अनुसार एक अपंजीकृत व्यक्ति को इस अधिनियम के तहत किसी वस्तु व/या सेवा की आपूर्ति पर कर के रूप में प्राप्त नहीं करना चाहिए.
=> धारा 32(1) के अनुसार एक अपंजीकृत व्यक्ति को इस अधिनियम के तहत किसी वस्तु व/या सेवा की आपूर्ति पर कर के रूप में प्राप्त नहीं करना चाहिए.
=> धारा 32(2) के अनुसार कोई पंजीकृत व्यक्ति इस अधिनियम के प्रावधानों में निर्दिष्ट कर के अलावा प्राप्त नहीं करे.
क्रेडिट नोट { संदर्भ धारा 34(1) व (2) व नियम 53 } :-
जब वस्तुओं व/या सेवाओं की आपूर्ति के लिए एक टैक्स इनवॉइस जारी किया गया हो व उसमे करयोग्य कीमत या कर ज्यादा चार्ज किया गया हो या प्राप्तकर्ता ने वस्तुएं वापस भेज दी हो या सेवाओं में खामी पाई गई हो तब पंजीकृत आपूर्तिकर्ता को नियम 53 के तहत क्रेडिट नोट जारी करना चाहिए और इसकी जानकारी उसके द्वारा फाइल किए जाने वाले जीएसटीआर-1 रिटर्न (वित्तीय वर्ष के बाद में आने वाले सितम्बर या वार्षिक रिटर्न फाइल करने के तिथि, दोनों में जो पहले हो) में देनी चाहिए.
डेबिट नोट { संदर्भ धारा 34(3) व (4) व नियम 53 } :- - जब वस्तुओं व/या सेवाओं की आपूर्ति के लिए एक टैक्स इनवॉइस जारी किया गया हो व उसमे करयोग्य कीमत या कर कम चार्ज किया गया हो तब पंजीकृत आपूर्तिकर्ता को नियम 53 के तहत डेबिट नोट जारी करना चाहिए और इसकी जानकारी उसके द्वारा फाइल किए जाने वाले जीएसटीआर-1 रिटर्न (वित्तीय वर्ष के बाद में आने वाले सितम्बर या वार्षिक रिटर्न फाइल करने के तिथि, दोनों में जो पहले हो) में देनी चाहिए.
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अकाउंट्स व रेकॉर्ड्स :-
धारा 35 :: (1) हर पंजीकृत व्यक्ति को उसके मुख्य कार्यस्थल पर निम्न कार्यों की सही जानकारी रखनी चाहिए :-
- (a) वस्तुओं के उत्पादन की;
- (b) वस्तुओं व/या सेवाओं के इनवर्ड व आउटवर्ड आपूर्ति;
- (c) वस्तुओं के स्टॉक;
- (d) इनपुट टैक्स क्रेडिट लेने की;
- (e) आउटपुट टैक्स देय व भुगतान;
- (f) अन्य जानकारी;
-
बशर्ते जहाँ एक से ज्यादा व्यापार के स्थल जीएसटी पंजीकरण पत्र में वर्णित है, तो उन स्थानों से संबंधित अकाउंट उन सभी स्थानों पर रखने चाहिए;
और बशर्ते पंजीकृत व्यक्ति ऐसे अकाउंट व अन्य विवरण, निर्धारित किए गए इलेक्ट्रॉनिक फॉर्म में रख सकता है।
(2) हर मालिक या वेयरहाउस चलाने वाले को या गोडाउन या कोई अन्य स्थान जिसे वस्तुएं रखने के लिए काम में लिया जाता है और मालवाहक (transporter), चाहे वह पंजीकृत हो या नहीं हो, उसे भी रेकॉर्ड रखने होंगे।
(3) हर पंजीकृत व्यक्ति जिसका टर्नओवर वित्तीय वर्ष में 2 करोड़ से अधिक हो तो उसे उसके रेकॉर्ड को चार्टर्ड एकाउंटेंट या कॉस्ट एकाउंटेंट से ऑडिट कराना होगा। - धारा 34(6) ::
- जब सामान गुम हो जाए, चोरी हो गया, नष्ट हो गया, लिख दिया गया (written off) या उपहार या मुफ्त नमूनों के माध्यम से निपट गया, और पंजीकृत व्यक्ति उसकी जानकारी रिकार्ड्स में नहीं बताए तो संबंधित अधिकारी ऐसी वस्तुओं व/या सेवाओं पर देय कर की गणना धारा 73 या 74 के तहत करेगा।
- धारा 34(7) ::
- पंजीकृत व्यक्ति को एकाउंट्स व रेकॉर्ड्स को संबंधित वार्षिक रिटर्न फाइल करने की तय तारीख से 6 वर्षों या संबंधित अपील के बाद 1 वर्ष तक रखने होंगे;धारा 34(7) :: पंजीकृत व्यक्ति को एकाउंट्स व रेकॉर्ड्स को संबंधित वार्षिक रिटर्न फाइल करने की तय तारीख से 6 वर्षों या संबंधित अपील के बाद 1 वर्ष तक रखने होंगे;
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जीएसटी रिटर्न :-
- => सामान्य या रेगुलर जीएसटी पंजीकृत व्यक्ति को निम्नलिखित जीएसटी रिटर्न फाइल करने होते हैं -
- (1) GSTR-1 (टर्नओवर ₹1.5 करोड़ तक है तो तिमाही अन्यथा मासिक) { संदर्भ धारा 37 व नियम 59(1) }
- (2) GSTR-3B (मासिक) { संदर्भ धारा 39(1) व नियम 61(5) }
- (3) वार्षिक रिटर्न GSTR-9 { संदर्भ नियम 80 } और यदि टर्नओवर ₹2 करोड़ से अधिक हो तो GSTR-9C { संदर्भ नियम 80(3) } भी फाइल करना होगा.
- => जीएसटी की कम्पोजीशन योजना में पंजीकृत व्यक्ति को निम्नलिखित जीएसटी रिटर्न/कथन (Statement) फाइल करने होते हैं -
- (1) GST CMP-08 कथन (तिमाही, तिमाही समाप्त होने के बाद 18 तारीख तक) { संदर्भ नियम 67(1) }
- (2) GSTR-4 रिटर्न (वार्षिक- 30अप्रेल तक) { संदर्भ नियम 62 }
- (3) GSTR-9A वार्षिक रिटर्न { संदर्भ नियम 80 }
-
=> जीएसटी में पंजीकृत अनिवासी (Non Resident) व्यक्ति को जीएसटी रिटर्न GSTR-5 फाइल करना होता है; { संदर्भ नियम 63 }
=> जीएसटी में पंजीकृत आवक सेवा वितरक (Input Service Distributor Or ISD) को जीएसटी रिटर्न GSTR-6 फाइल करना होता है; { संदर्भ नियम 65 }=> जो व्यक्ति जीएसटी का स्रोत पर कर काटते (Tax Deduction at Source Or TDS) हैं उन्हें जीएसटी रिटर्न GSTR-7 फाइल करना होता है; { संदर्भ नियम 66(1) }
=> जो व्यक्ति जीएसटी का स्रोत पर कर संग्रह (Tax Collection at Source Or TCS) करते हैं उन्हें जीएसटी रिटर्न GSTR-8 और वार्षिक कथन GSTR-9B फाइल करना होता है { संदर्भ धारा 52(5) व नियम 80(2) };
=> यदि किसी सामान्य या रेगुलर जीएसटी पंजीकृत व्यक्ति ने अपना पंजीकरण वित्तीय वर्ष पूरा होने से पहले रद्द करा दिया है तो उसे जीएसटी पंजीकरण रद्द होने की तिथि से 3 महीने की भीतर जीएसटी रिटर्न GSTR-10 (Final Return) फाइल करना होगा { संदर्भ धारा 45 व नियम 81 };
- => जीएसटी में पंजीकृत संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी या विदेशी वाणिज्य दूतावास { जिन्हें जीएसटी विभाग अद्वितीय पहचान संख्या (Unique Identification Number) आवंटित करता है } को उनके द्वारा प्राप्त की गई वस्तुओं व/या सेवाओं की जानकारी जीएसटी रिटर्न GSTR-11 में देनी होती है { संदर्भ नियम 82 }.
-
उपरोक्त जीएसटी रिटर्न में से मुख्य रिटर्न की विस्तृत जानकारी -
(1) GSTR-1 :-
जिसका वार्षिक टर्नओवर ₹ 1.5 करोड़ तक है उसे तिमाही GSTR-1 रिटर्न फाइल करने का विकल्प दिया गया है जिसे वह तिमाही समाप्त होने के अगले महीने की अंतिम तारीख तक फाइल कर सकता है, और यदि वह चाहे तो प्रति माह भी यह रिटर्न फाइल कर सकता है। यह विकल्प उसे वित्तीय वर्ष प्रारम्भ होने के बाद पहला रिटर्न फाइल करते समय GST Portal पर देना होता है व एक बार विकल्प देने के बाद उस वित्तीय वर्ष में बदल नहीं सकते।
अन्य सभी को (जिनका टर्नओवर ₹ 1.5 करोड़ से अधिक है) यह रिटर्न प्रति माह फाइल करना होता है, जिसे वह अगले महीने की 10 तारीख तक फाइल कर सकता है।
टेबल 4B -
इस रिटर्न की टेबल 4B में जीएसटी पंजीकृत व्यक्ति ने एक माह / तिमाही में वस्तुओं व/या सेवाओं की आपूर्ति करते हुए जितने जीएसटी कर-बीजक (GST Tax Invoice) जारी किए उनका सभी का पूरा विवरण {पानेवाले का जीएसटी नं., कर-बीजक का नं. व दिनांक, कर-योग्य कीमत, देय जीएसटी की दर व राशि) देना होता है।
यदि जीएसटी पंजीकृत व्यक्ति ने EOU को वस्तुओं व/या सेवाओं की आपूर्ति की है तो उसे टेबल 4B में दिए गए उपयुक्त चेक-बॉक्स (IGST भरकर या बिना IGST भरे LUT में आपूर्ति) को चेक करना होता है।
यदि जीएसटी पंजीकृत व्यक्ति ने SEZ को वस्तुओं व/या सेवाओं की आपूर्ति की है तो उसे टेबल 4B में दिए गए उपयुक्त चेक-बॉक्स (IGST भरकर या बिना IGST भरे LUT में आपूर्ति) को चेक करना होता है।
टेबल 5 -
यदि जीएसटी पंजीकृत व्यक्ति ने अपंजीकृत व्यक्तियों को ₹ 2.5 लाख से अधिक की वस्तुओं व/या सेवाओं की कर-योग्य अन्तर्राज्यीय आपूर्ति (inter-state supply) की है तो उसे उसका विवरण इस टेबल 5 में दर्शाना होता है।
टेबल 6A -
यदि जीएसटी पंजीकृत व्यक्ति ने वस्तुओं व/या सेवाओं का निर्यात किया है तो उसे टेबल 6A में उसका पूरा विवरण (कर-बीजक नं., दिनांक व कीमत, शिपिंग बिल नं. व दिनांक, IGST भरकर या बिना IGST भरे LUT में आपूर्ति) दर्शाना होता है।
टेबल 7 -
यदि जीएसटी पंजीकृत व्यक्ति ने अपंजीकृत व्यक्तियों को उक्त टेबल 5 के अलावा वस्तुओं व/या सेवाओं की कर-योग्य आपूर्ति की है तो उसे उसका विवरण इस टेबल 7 में दर्शाना होता है।
टेबल 8 -
यदि जीएसटी पंजीकृत व्यक्ति ने निल रेट (Nil rate), जीएसटी-मुक्त (exempted) या बिना जीएसटी (Non GST) की आपूर्ति की है तो उसे उसका विवरण टेबल 8 में दर्शाना होता है।
टेबल 9 -
पहले फाइल किए गए GSTR-1 की टेबल 4B या 6A में यदि कोई त्रुटी रह गई हो, या किसी इनवॉइस में ज्यादा कीमत/कर दर्शाया हो तो उसका क्रेडिट नोट, या किसी इनवॉइस में कम कीमत/कर दर्शाया हो तो उसके लिए डेबिट नोट, उनका विवरण टेबल 9 में दर्शाना होता है।
टेबल 10 -
पहले फाइल किए गए GSTR-1 की टेबल 7 में यदि कोई त्रुटी रह गई हो, तो उसका विवरण टेबल 10 में दर्शाना होता है।
टेबल 11 -
यदि किसी से एडवांस रकम मिली हो तो उसका विवरण टेबल 11 में दर्शाना होता है।
टेबल 12 -
टेबल 12 में पुरे माह / तिमाही के दौरान की गई वस्तुओं व/या सेवाओं की आपूर्ति की HSN wise जानकारी दर्शानी होती है।
टेबल 13 -
टेबल 13 में पुरे माह / तिमाही के दौरान की गई वस्तुओं व/या सेवाओं की आपूर्ति के कर-बीजक (tax invoice), रिवाइज्ड कर-बीजक (tax invoice), डेबिट/क्रेडिट नोट, प्राप्ति रसीद (receipt voucher), भुगतान रसीद (payment voucher), प्रतिदेय रसीद (refund voucher), जॉब वर्क के डिलीवरी चालान, अनुमोदन के लिए आपूर्ति के डिलीवरी चालान (delivery challan for supply on approval), तरल गैस के डिलीवरी चालान, आपूर्ति के अलावा भेजे गए माल के डिलीवरी चालान (delivery challan in cases other than by way of supply) की जानकारी दर्शानी होती है।
(2) GSTR-3B { नियम 61(5) के तहत }-
यह रिटर्न प्रति माह सभी सामान्य या रेगुलर जीएसटी पंजीकृत व्यक्तियों को 20 तारीख तक फाइल करना होता है जिसमे उस व्यक्ति द्वारा प्राप्त किए गए इनपुट (कच्चा माल), इनपुट-सेवाएं (Input Services), कैपिटल वस्तुएं (Capital Goods) के कुल इनपुट टैक्स क्रेडिट का समायोजन उसके द्वारा आपूर्ति पर देय जीएसटी करों (IGST, CGST, SGST & Compensation Cess) से करने के बाद शेष जीएसटी करों का भुगतान ई-चालान द्वारा करना होता है।
इस रिटर्न की टेबल 3.1 में सामान्य या रेगुलर जीएसटी पंजीकृत व्यक्ति द्वारा उस माह के दौरान आपूर्ति की गई वस्तुओं व/या सेवाओं के सभी कर-बीजकों (Tax Invoices) के कर-योग्य कीमत, IGST, CGST, SGST, Cess के विवरण का सारांश देना होता है, जिसकी -
=> पंक्ति (a) में भारत में आपूर्ति का विवरण,
=> पंक्ति (b) में निर्यातित वस्तुओं व/या सेवाओं की आपूर्ति का विवरण,
=> पंक्ति (c) में निल रेट व कर-मुक्त आपूर्तियों का विवरण,
=> पंक्ति (d) में जीएसटी पंजीकृत व्यक्ति द्वारा प्राप्त या आवक आपूर्तियों (Inward Supplies) का विवरण जिस पर रिवर्स चार्ज में जीएसटी देय होता है,
=> पंक्ति (e) में नॉन-जीएसटी आपूर्तियों का विवरण (जैसे- पेट्रोल, डीजल, शराब आदि)।
इस रिटर्न की टेबल 3.1 में शामिल ऐसी आपुर्तियाँ जो कि अपंजीकृत व्यक्तियों, कम्पोजीशन कर-योग्य व्यक्तियों व UIN को की गई है तो उनका विवरण टेबल 3.2 में दर्शाना होता है।
इस रिटर्न की टेबल 4 में पंजीकृत व्यक्ति द्वारा प्राप्त किए गए इनपुट (कच्चा माल), इनपुट-सेवाएं (Input Services), कैपिटल वस्तुएं (Capital Goods) के कुल इनपुट टैक्स क्रेडिट का विवरण देना होता है, जिसकी -
=> पंक्ति A(1) में आयातित वस्तुओं का आईटीसी;
=> पंक्ति A(2) में आयातित सेवाओं का आईटीसी;
=> पंक्ति A(3) में जीएसटी पंजीकृत व्यक्ति द्वारा प्राप्त या आवक आपूर्तियों (Inward Supplies) का आईटीसी विवरण, जिस पर रिवर्स चार्ज में जीएसटी देय होता है;
=> पंक्ति A(4) में आवक सेवा वितरक (Input Service Distributor Or ISD) से प्राप्त आईटीसी का विवरण;
=> पंक्ति A(5) में उपरोक्त A(1) से A(4) को छोड़कर अन्य सभी आईटीसी का विवरण;
=> पंक्ति B(1) में नियम 42 व 43 के तहत रिवर्स किए जाने वाले आईटीसी का विवरण;
=> पंक्ति B(2) में अन्य रिवर्स किए जाने वाले आईटीसी का विवरण;
=> पंक्ति D(1) में धारा 17(5) के प्रावधानों के तहत अयोग्य आईटीसी का विवरण (यानि जिसका आईटीसी नहीं मिलता है);
=> पंक्ति D(2) में अन्य अयोग्य आईटीसी का विवरण (यानि जिसका आईटीसी नहीं मिलता है);
दर्शाना होता है।इस रिटर्न की टेबल 5 में पंजीकृत व्यक्ति द्वारा प्राप्त कर-मुक्त, शुन्य-दर व बिना-जीएसटी आपूर्तियों का विवरण देना होता है.
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- जीएसटी पहचान संख्या (GSTIN)-
- कारोबारी द्वारा जीएसटी में पंजीकरण कराने पर जीएसटी पोर्टल 15 अक्षरों की एक अद्वितीय पहचान संख्या (Unique Identification Number) आवंटित करता है। बोलचाल की भाषा में हम इसे GST नंबर या जीएसटिन (GSTIN) कह सकते हैं। इसे वस्तु या सेवा का व्यापार / व्यवसाय करने वाले हर कारोबारी को लेना अनिवार्य है। भले ही वह जीएसटी की कम्पोजीशन योजना में पंजीकृत हो, या सामान्य/रेगुलर जीएसटी पंजीकृत व्यक्ति हो, या वस्तुओं का निर्माण/बिक्री करता हो, या रेस्टोरेंट, या किसी अन्य सेवा क्षेत्र का व्यवसाय करता हो।
- जीएसटिन (GSTIN) की संरचना :-
SUpaaaaaaaanNZN
- पहले 2 अक्षर राज्य या केंद्र-शासित प्रदेश को दर्शाते हैं,
- अगले 10 अक्षर आयकर विभाग द्वारा आवंटित स्थाई लेखा संख्या (Permanent Account Number or PAN) को दर्शाते हैं,
- 13वां अक्षर एक ही PAN के तहत पंजीकृत विभिन्न इकाइयों को दर्शाता है,
- 14वां अक्षर अभी Z अल्फाबेट रखा गया है,
- 15वां या अंतिम अक्षर चेकसम अंक है.
-
क्रम सं.
राज्य/केंद्र-शासित प्रदेश का नाम
कोड
- 1
- जम्मू एवं कश्मीर
- 01
- 2
- हिमाचल प्रदेश
- 02
- 3
- पंजाब
- 03
- 4
- चंडीगढ़
- 04
- 5
- उत्तराखण्ड
- 05
- 6
- हरियाणा
- 06
- 7
- दिल्ली
- 07
- 8
- राजस्थान
- 08
- 9
- उत्तर प्रदेश
- 09
- 10
- बिहार
- 10
- 11
- सिक्किम
- 11
- 12
- अरुणाचल प्रदेश
- 12
- 13
- नागालैंड
- 13
- 14
- मणिपुर
- 14
- 15
- मिजोरम
- 15
- 16
- त्रिपुरा
- 16
- 17
- मेघालय
- 17
- 18
- असम
- 18
- 19
- पश्चिम बंगाल
- 19
- 20
- झारखण्ड
- 20
- 21
- उडीसा
- 21
- 22
- छत्तीसगढ़
- 22
- 23
- मध्य प्रदेश
- 23
- 24
- गुजरात
- 24
- 25
- दमण एवं दीव (26.1.2020 तक)
- 25
- 26
- दादरा एवं नगर हवेली (27.1.2020 से दमन व दीव भी)
- 26
- 27
- महाराष्ट्र
- 27
- 28
- आंध्रप्रदेश (पुराना)
- 28
- 29
- कर्नाटक
- 29
- 30
- गोवा
- 30
- 31
- लक्षद्वीप
- 31
- 32
- केरल
- 32
- 33
- तमिलनाडु
- 33
- 34
- पांडिचेरी
- 34
- 35
- अंदमान व निकोबार
- 35
- 36
- तेलंगाना
- 36
- 37
- आंध्रप्रदेश (नया)
- 37
- 38
- लद्दाख (31.10.2019 से)
- 38
-